Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 6 Question Answer Premchand ke fate Joote

NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

 

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1 – हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्रं हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के चित्रं सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?

उत्तर – इस पाठ को पढ़कर हमें प्रेमचंद्र जी के व्यक्तित्व की निम्न विशेषताओं का पता चलता है –

अत्यंत संघर्षशील लेखक – मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपने जीवन में सभी संघर्षों का डटकर सामना किया और उनके जीवन में आने वाले सभी चट्टानों को उन्होंने ठोकरें मारी। उन्होंने कभी भी समझौता नहीं किया और अपने जीवन में उन्होंने अगल-बगल के कोई भी रास्ते नहीं खोजें दृढ़ संकल्प होकर वह संघर्ष करते रहे। जैसा कि लेखक जी ने पाठ में अपने शब्दों में व्यक्त किया है कि – “तुम किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे हो। ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया।”

उनका अपराजेय व्यक्तित्व – मुंशी प्रेमचंद जी का व्यक्तित्व अपराजेय था क्योंकि उन्होंने कष्ट सहकर भी हार को स्वीकार नहीं किया। मुंशी प्रेमचंद जी अगर मनचाहा परिवर्तन नहीं कर सके तो वह कभी भी किसी की कमजोरियों पर भी नहीं हँसे। उन्होंने निराश होकर जीने के बजाए अपने चेहरे पर मुस्कान को बनाए रखा और मुस्कुराते रहें। उनकी नजरों में एक व्यंग्य रहता था और चेहरा आत्मविश्वास से भरा रहता था। हरिशंकर परसाई जी ने लिखा है अपने शब्दों में की – “यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हँस भी रहा है।”

कष्टों से भरा जीवन – प्रेमचंद्र जी ने जीवन भर आर्थिक संकटों का सामना किया और कष्टों को झेलते रहे। प्रेमचंद्र जी बहुत ही साधारण वस्त्र पहनते थे, जैसा कि पाठ भी इसी नाम से है कि ‘प्रेमचंद के फटे जूते’। उनके जूते भी फटे हुए थे तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा आप लगा ही सकते हैं।

सहजता – मुंशी प्रेमचंद्र जी इतने सहज व्यक्ति थे कि वह अंदर और बाहर से एक जैसे ही थे कोई बाहरी दिखावा नहीं था उनके अंदर, और ना ही वह दिखावे में विश्वास रखते थे। लेखक जी ने अपने शब्दों में एक बारे में बताया है कि – इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी-इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है।”

प्रश्न 2 – सही कथन के सामने (✓) का निशान लगाइए-

1. बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।

2. लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।

3. तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।

4. जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?

 

उत्तर – ✓ 2. लोग तो इत्र चुपड़कर फ़ोटो खिंचाते हैं जिससे फ़ोटो में खुशबू आ जाए।

प्रश्न 3 – नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-

(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।

उत्तर – हमारे जीवन में यही तो एक विडंबना बन चुकी है की जिस चीज का स्थान पाँव में होता है अर्थात जो चीज नीचे होती है उसे बहुत ज्यादा ही महत्वपूर्ण माना जाता है। जिस चीज का स्थान ऊंचा है यानी कि जिसे हम सिर पर बिठा सकते हैं, जो सिर पर बिठाने के योग्य है उसे आज के समय में बहुत ही कम सम्मान मिलता है और पहले भी ऐसा होता था परंतु आज के समय में यह बहुत ही सामान्य हो चुका है। आजकल  जूते धनवान व्यक्तियों का प्रतीक है धनवानों का मान सम्मान और भी ज्यादा बढ़ चुका है। कोई एक धनवान व्यक्ति है तो उसके पीछे 25 गुण वाले लोग जिनके अंदर काफी ज्यादा गुण है वह भी न्योछावर हो जाते हैं। जिनके अंदर गुणों की कमी नहीं है वह भी धनवानो के यहां पर जी हजूरी करते हैं।

(ख) तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुरबान हो रहे हैं।

उत्तर – प्रेमचंद्र जी ने कभी भी पर्दा प्रथा या लुकाव-छिपाव को ज्यादा महत्व कभी नहीं दिया ल उन्होंने जो वास्तविकता है उसी को माना और इसी में वह संतुष्ट भी रहे। उनके पास छिपाने जैसा कुछ था ही नहीं, वह अंदर और बाहर से एक जैसे थे। यहां तक कि उनका पहनावा भी बहुत ही साधारण रहता था। लेखक भी अपने आप और अपने युग की मन की भावना पर व्यंग्य करते हैं कि यदि हम पर्दा रखेंगे तो उसको बहुत बड़ा गुण माना जाता है। आज के समय में जो भी व्यक्ति अपने कष्टों को छुपा लेता है और समाज के सामने सुखी होने का दिखावा करता है तो उसे हम महान मान लेते हैं। जो भी अपने दोषों को छुपा ले और स्वयं को महान सिद्ध कर दे हम उसी को श्रेष्ठ मानते हैं।

(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?

उत्तर – हरिशंकर जी कहते हैं की प्रेमचंद्र जी ने समाज में जिस भी चीज को घृणा के योग्य समझा उसको उन्होंने कभी अपने हाथ की उंगली से नहीं छुआ बल्कि अपने पांव की उंगली से ही उसकी तरफ इशारा किया। अर्थात उन्होंने हर चीज जो भी घृणा योग्य थी उसको अपनी ठोकर पर ही रखा अपने जूते की नोक के समान ही उसे समझा और उसके विरुद्ध संघर्ष किया।

प्रश्न 4 – पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?

उत्तर – मेरे विचार के अनुसार लेखक ने प्रेमचंद के बारे में यही विचार व्यक्त किया होगा कि समाज में यही परंपरा है कि लोग जब कोई अच्छा अवसर होता है तभी वह अपने उन कपड़ों को निकालते हैं जिसको वह बहुत ही अच्छा समझते हैं। प्रेमचंद्र के कोई भी कपड़े ऐसे नहीं थे जिसे पहन कर वह फोटो खींचा सकें ऐसे में जो कपड़े घर पर पहनते थे वह भी अधिक खराब थे। तुरंत ही उनको यह याद आता है कि प्रेमचंद जी बहुत ही सादगी से रहने वाले व्यक्ति हैं और आडंबर और दिखावे से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं उनका रहन-सहन भी अन्य व्यक्तियों की तरह नहीं हैं उनसे बहुत ही अलग है इसीलिए उन्होंने अपनी टिप्पणी बदल दी।

प्रश्न 5 – आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं?

उत्तर – इस व्यंग्य को पढ़कर मुझे सबसे आकर्षक बात यह लगती है की इस व्यंग की विस्तार शैली बहुत ही अच्छी है और हमें बहुत ही ज्यादा आकर्षित करती है। लेखक इस संदर्भ में किसी एक विषय को समझाते-समझाते दूसरे संदर्भ की ओर बढ़ता चला जाता है जो कि इसी व्यंग्य से जुड़ा हुआ होता है। इस प्रकार से लेखक एक छोटी सी बूंद में सागर को ढूंढने का प्रयास करता है। जिस प्रकार से किसी बीज में से सबसे पहले अंकुर निकलता है और फिर पत्तियां और फिर धीरे-धीरे वह पौधे में परिवर्तित हो जाता है। उसके बाद उसमें से फूल आते हैं, फल आते हैं और धीरे-धीरे विकास होता चला जाता है। उसी प्रकार से ही यह पूरा निबंध प्रेमचंद जी के फटे जूते से शुरू होता है और धीरे-धीरे बात खुलते खुलते प्रेमचंद जी के पूरे व्यक्तित्व को उजागर कर देता है इस पूरे व्यंग्य में बात से बात निकली है। यह व्यंग्य शैली इसी वजह से बहुत ही आकर्षक बनी हुई है।

प्रश्न 6 – पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा?

उत्तर – इस पाठ में टीले शब्द का प्रयोग किया गया है जो कि राह में आने वाले बाधा का प्रतीक होता है जिस तरह से हम रास्ते में चलते हैं और फिर रास्ते में हमें टीला दिखाई दे जाता है फिर हम उसे पार करने के लिए बहुत ही ज्यादा परिश्रम करते हैं और सावधानी से आगे बढ़ते हैं। उसी प्रकार से सामाजिक विषमताओं को और गरीबी, अंधविश्वास, छुआछूत, आदि चीजें भी मनुष्य की उन्नति में बाधा बनती हैं इन्हीं बुराइयों के संदर्भ में इस पाठ में पीला शब्द को जोड़ा गया है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 7 – प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।

उत्तर – छात्र अपने द्वारा स्वयं ही सोचे और लिखें क्योंकि यह आपकी मानसिक शक्ति को बढ़ाएगा।

प्रश्न 8 – आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?

उत्तर – हमारी दृष्टि में आज के समय में लोगों की वेशभूषा की सोच में बहुत अधिक परिवर्तन आया है लोग आज के समय में अच्छी वेशभूषा को ही समाजिक प्रतिष्ठा का निशान मानने लगे हैं। लोग उन व्यक्तियों को ज्यादा मान सम्मान देते हैं और आदर देते हैं जिनकी वेशभूषा काफी अच्छी होती है भले ही उस व्यक्ति का जो आचरण है उसे नहीं देखते हैं। कोई व्यक्ति कैसा भी हो वेशभूषा से ही व्यक्ति सामने वाले को अमीर और गरीब समझते हैं और विचारों का प्रभाव तो बहुत ही बाद में पड़ता है उसके विचार कैसे हैं उसके आचरण कैसे हैं। यह चीजें कोई देखता ही नहीं है। आज के समय में अगर कोई बड़ी सी पार्टी हो रही हो तो वहां पर कोई धोती और कुर्ता पहन कर जाए तो उसे बहुत ही गरीब और बहुत ही पिछड़े वर्ग का समझा जाएगा। इसी तरह से अगर हम किसी कार्यालय में जाएं कोई सरकारी दफ्तर में तो वहां के जो कर्मचारी होंगे वह हमारी वेशभूषा के अनुसार ही हमारे साथ व्यवहार करेंगे। इसी कारण से लोग खासकर आजकल के युवा आधुनिक बनने की होड़ में जुटे हुए हैं।

 

 

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