Swadeshi Andolan kya tha

In this post we are going to discuss about the स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan).

स्वदेशी आंदोलन क्या था?

इस पाठ में आप जानेंगे की आखिरकार स्वदेशी आंदोलन क्या था? स्वदेशी आंदोलन से जुड़े हुए सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं को आप इस पाठ में जानेंगे। स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan)

स्वदेशी आंदोलन का उद्देश्य

स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करता था। यह आंदोलन मुख्य रूप से 1905 से 1911 के बीच तक चला था, लेकिन स्वदेशी आंदोलन का प्रभाव और विचारधारा स्वतंत्रता प्राप्ति तक और उसके बाद भी बने रहा। स्वदेशी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहन प्रदान करना और ब्रिटिश के वस्त्रों और वस्तुओं का बहिष्कार करना था।

पृष्ठभूमि

स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 1905 में हुई, जब ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन करने का अपना फैसला किया। बंगाल के विभाजन का मुख्य उद्देश्य बंगाल में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच फूट डालना था, ताकि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर किया जा सके। बंगाल के इस विभाजन ने भारतीय जनता में बहुत ही गहरा असंतोष और आक्रोश उत्पन्न कर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य स्वतंत्रता संग्रामियों ने इस विभाजन के विरोध में ही स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत कर दी थी। स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan)

स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख लक्ष्य

1. ब्रिटिश के वस्त्रों का बहिष्कार – स्वदेशी आंदोलन का सबसे मुख्य उद्देश्य ब्रिटिशों के वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार करना था। लोग ब्रिटिशों के वस्त्रों को सार्वजनिक रूप से जलाने लगे और भारतीय वस्त्रों का उपयोग करने लगे।

2. स्वदेशी उद्योगों का बढ़ावा – स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय उद्योगों और कारीगरों को प्रोत्साहित किया। स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक चरखे पर सूत कातना और खादी वस्त्र पहनना बन गया। स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan)

3. राष्ट्रीय शिक्षा – स्वदेशी आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय शिक्षा को भी अधिक मात्रा में बढ़ावा दिया गया। लोगों के द्वारा ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के स्थान पर भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर आधारित शिक्षा प्रणाली का समर्थन किया गया।

4. स्वदेशी संस्थानों का विकास –  स्वदेशी आंदोलन के तहत कई स्वदेशी बैंक, बीमा कंपनियां, और अन्य संस्थान स्थापित किए गए।

स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख नेता और घटनाएं

स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, अरबिंदो घोष, और रवींद्रनाथ टैगोर आदि शामिल थे। इन सभी नेताओं ने विभिन्न सभाओं, जुलूसों और जनसभाओं के माध्यम से लोगों को स्वदेशी अपनाने के लिए प्रेरित किया। स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan)

रवींद्रनाथ टैगोर जी ने ‘रक्षा बंधन’ त्योहार का आयोजन किया, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोग ने एक-दूसरे को राखी बांधकर एकता और भाईचारे का संदेश दिया। 

बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव और शिवाजी महोत्सव जैसे त्योहारों का आयोजन किया, जिससे लोगों में राष्ट्रीयता की भावना और अधिक प्रबल हुई।

स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव

स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय जनता में स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता की भावना कोबहुत अधिक मात्रा में मजबूत किया। भारतीय उद्योगों को बढ़ावा मिला और खादी वस्त्रों का बहुत अधिक मात्रा में उपयोग हुआ। स्वदेशी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का बहुत ही महत्वपूर्ण चरण था, जिसने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया और स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साथ में आगे बढ़ाया। स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan)

स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan) निष्कर्ष

इस स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई जान फूंकी। इसने भारतीयों को आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय गर्व और सांस्कृतिक चेतना का संदेश दिया। ब्रिटिश वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार करके, भारतीयों ने न केवल आर्थिक रूप से ब्रिटिश शासन को कमजोर कर दिया, साथ ही अपने स्वाभिमान और स्वदेशी उत्पादों के महत्व को भी लोगों ने भलीभांति रूप से समझा। स्वदेशी आंदोलन की विचारधारा और उसके प्रभाव आज भी भारतीय समाज में देखे जा सकते हैं, जो आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को सही रूप से प्रोत्साहित करते हैं। स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi Andolan)

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