In this post we are going to discuss about the सोवियत संघ के विघटन के कारण (Soviet Sangh Ka Vighatan Ke Karan)
सोवियत संघ के विघटन के कारण (Soviet Sangh Ka Vighatan Ke Karan)
सोवियत संघ का विघटन 1991 में हुआ, जो 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है। इस घटना ने न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति को बदल दिया बल्कि शीतयुद्ध की समाप्ति का संकेत भी दिया। सोवियत संघ का विघटन कई आंतरिक और बाहरी कारणों का परिणाम था, जिसमें राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक समस्याएँ शामिल थीं। आइए इन कारणों को विस्तार से समझते हैं:-
1. आर्थिक असफलताएँ
सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था लंबे समय तक केंद्रीकृत योजना पर आधारित थी। यह प्रणाली प्रारंभिक दौर में सफल रही, लेकिन समय के साथ इसकी कमजोरियाँ उजागर होने लगीं। भारी उद्योगों पर अधिक ध्यान देने के कारण उपभोक्ता वस्तुओं की कमी हो गई, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ने लगा। उत्पादन की गति धीमी हो गई, और देश की आर्थिक वृद्धि रुक गई। 1980 के दशक में, तेल की कीमतों में गिरावट और विदेशी कर्ज के बढ़ते बोझ ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। सोवियत संघ के विघटन के कारण
2. राजनीतिक भ्रष्टाचार और नौकरशाही
सोवियत संघ की राजनीतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार और नौकरशाही का स्तर बहुत अधिक था। सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी में निर्णय लेने की प्रक्रिया केंद्रीकृत थी, और अधिकांश निर्णय शीर्ष नेतृत्व द्वारा ही लिए जाते थे। इससे सत्ता के दुरुपयोग की घटनाएँ बढ़ गईं। लोग सरकार के प्रति अविश्वास करने लगे, जिससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी। सोवियत संघ के विघटन के कारण
3. मिखाइल गोर्बाचेव की नीतियाँ
1985 में मिखाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के नेतृत्व का कार्यभार संभाला। उन्होंने सुधारों की एक श्रृंखला की शुरुआत की, जिन्हें ‘ग्लासनोस्त’ (खुलापन) और ‘पेरेस्त्रोइका’ (पुनर्गठन) कहा गया। ग्लासनोस्त के तहत प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों को बढ़ावा दिया गया, जबकि पेरेस्त्रोइका के तहत आर्थिक और राजनीतिक सुधारों का प्रयास किया गया। इन नीतियों ने लोगों को खुलकर बोलने का अवसर दिया, लेकिन इससे सरकार के खिलाफ विरोध भी बढ़ गया। सुधारों की प्रक्रिया को ठीक से लागू न कर पाने के कारण यह नीतियाँ विफल हो गईं और अस्थिरता को बढ़ावा मिला। सोवियत संघ के विघटन के कारण (Soviet Sangh Ka Vighatan Ke Karan)
4. राष्ट्रीयतावादी आंदोलनों का उदय
सोवियत संघ विभिन्न राष्ट्रीयताओं का एक संघ था। इसमें 15 गणराज्य थे, जिनमें से कई की अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान थी। गोर्बाचेव की नीतियों के कारण इन गणराज्यों में स्वतंत्रता की माँग बढ़ने लगी। बाल्टिक राज्यों (लिथुआनिया, लातविया, और एस्तोनिया) ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसके बाद अन्य गणराज्यों ने भी इस दिशा में कदम उठाए। राष्ट्रीयता आधारित आंदोलनों ने संघ को कमजोर कर दिया।
5. शीतयुद्ध का दबाव और अंतरराष्ट्रीय स्थिति
शीतयुद्ध के समय में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनाव चरम पर था। दोनों देशों के बीच हथियारों की दौड़ ने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव डाला। इसके अलावा, अफगानिस्तान में सोवियत संघ की सैन्य हस्तक्षेप ने उसकी स्थिति को और कमजोर किया। इससे सोवियत संघ के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय में नकारात्मक छवि बनी और आंतरिक समस्याएँ बढ़ीं।
6. सैन्य खर्च और आर्थिक दबाव
सोवियत संघ ने अपनी सैन्य शक्ति को बनाए रखने के लिए भारी मात्रा में संसाधन खर्च किए। हथियारों की होड़ और सैन्य प्रौद्योगिकी के विकास पर अत्यधिक खर्च ने देश की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया। दूसरी ओर, नागरिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो पाया, जिससे आम जनता में असंतोष फैलने लगा। सोवियत संघ के विघटन के कारण
7. कम्युनिज्म में विश्वास की कमी
1980 के दशक के अंत तक, सोवियत संघ के लोगों में कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति विश्वास कम होने लगा। नागरिकों को महसूस होने लगा कि केंद्रीकृत सत्ता और सरकार की नीतियाँ उनकी समस्याओं को हल करने में असमर्थ हैं। साथ ही, पश्चिमी देशों की तुलना में सोवियत संघ में जीवन स्तर निम्न था, जिससे लोग कम्युनिस्ट शासन से असंतुष्ट हो गए। सोवियत संघ के विघटन के कारण (Soviet Sangh Ka Vighatan Ke Karan)
8. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और पश्चिमी मीडिया
पश्चिमी देशों से आने वाली जानकारी और मीडिया ने सोवियत संघ के नागरिकों के बीच जागरूकता बढ़ाई। टेलीविजन, रेडियो, और पत्रिकाओं के माध्यम से लोग पश्चिमी देशों की समृद्धि और स्वतंत्रता से अवगत होने लगे। इससे सोवियत संघ के शासन के प्रति लोगों की नाराजगी और अधिक बढ़ गई।
9. अधिकारियों में विभाजन
सोवियत संघ के उच्च अधिकारी और सेना के प्रमुख भी गोर्बाचेव की नीतियों और संघ के भविष्य को लेकर विभाजित थे। कुछ अधिकारी पुराने कठोर नियंत्रण को बनाए रखना चाहते थे, जबकि कुछ सुधारों का समर्थन कर रहे थे। इस विभाजन ने नेतृत्व को कमजोर कर दिया और देश को विघटन की ओर धकेल दिया।
10. 1991 का तख्तापलट प्रयास
अगस्त 1991 में, कुछ कट्टरपंथी नेताओं ने गोर्बाचेव को हटाने और कम्युनिस्ट नियंत्रण को पुनर्स्थापित करने के लिए तख्तापलट का प्रयास किया। हालांकि, यह प्रयास विफल हो गया, लेकिन इस घटना ने जनता में सरकार के प्रति अविश्वास को और बढ़ा दिया। इस तख्तापलट के बाद, सोवियत संघ की सत्ता में और अधिक गिरावट आई और संघ के विघटन की प्रक्रिया तेज हो गई। सोवियत संघ के विघटन के कारण
निष्कर्ष
सोवियत संघ के विघटन के कई कारण थे, जिनमें आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता, राष्ट्रीयतावादी आंदोलनों का उदय, और अंतरराष्ट्रीय दबाव प्रमुख थे। मिखाइल गोर्बाचेव की सुधार नीतियाँ भी संघ को बचाने में असफल रहीं। अंततः, 26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ का आधिकारिक रूप से विघटन हो गया और यह 15 स्वतंत्र गणराज्यों में विभाजित हो गया। इस घटना ने न केवल शीतयुद्ध को समाप्त किया बल्कि विश्व राजनीति का नया अध्याय भी शुरू किया। सोवियत संघ के विघटन के कारण
Thanks to visiting Digi Different you can also visit my YouTube channel Digi Different for tech and digital marketing related to videos. In this post we have discussed about the सोवियत संघ के विघटन के कारण (Soviet Sangh Ka Vighatan Ke Karan) Read our more posts NCERT Solutions for Class 9 Hindi Kshitiz Chapter 1, NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitiz Chapter 1 पद सोवियत संघ के विघटन के कारण (Soviet Sangh Ka Vighatan Ke Karan)