शीतयुद्ध (Cold War)

In this post we are going to discuss about the शीतयुद्ध(Cold War)​

परिचय

शीतयुद्ध (Cold War) का कालखंड 1947 से 1991 तक फैला हुआ है, जब अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के बीच वैश्विक सत्ता संघर्ष चरम पर था। इस संघर्ष ने वैश्विक राजनीति, सैन्य संबंधों और कूटनीतिक स्थितियों को गहराई से प्रभावित किया। हालांकि इस युद्ध में सीधे हथियारों का प्रयोग नहीं हुआ, लेकिन वैचारिक और राजनीतिक संघर्ष इतना तीव्र था कि इसे शीतयुद्ध कहा गया। इस लेख में हम शीतयुद्ध के प्रमुख कारणों का विश्लेषण करेंगे।

1. वैचारिक संघर्ष
शीतयुद्ध (Cold War) का प्रमुख कारण अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक मतभेद था। अमेरिका पूंजीवाद और लोकतंत्र का समर्थन करता था, जबकि सोवियत संघ साम्यवाद और तानाशाही का पक्षधर था। दोनों शक्तियां अपने-अपने विचारधाराओं को दुनिया भर में फैलाने की कोशिश कर रही थीं। यही वैचारिक विरोधाभास इस शीतयुद्ध का मूल कारण बना।

2. द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में शक्ति संतुलन बदल गया। यूरोप की बड़ी शक्तियां जैसे ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी कमजोर हो गईं और अमेरिका तथा सोवियत संघ प्रमुख विश्वशक्तियों के रूप में उभरे। युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर नाज़ी जर्मनी का सामना किया, लेकिन युद्ध समाप्त होते ही उनके बीच मतभेद उभर आए। सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप के देशों में साम्यवादी शासन स्थापित कर दिया, जिससे पश्चिमी यूरोप और अमेरिका चिंतित हो गए।

3. सत्ता विस्तार की होड़
अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही वैश्विक प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। सोवियत संघ अपने साम्यवादी विचारधारा को फैलाने के लिए पूर्वी यूरोप और एशिया में विस्तार कर रहा था, जबकि अमेरिका इसे रोकने के लिए पश्चिमी यूरोप और एशिया में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा था। दोनों महाशक्तियां विभिन्न देशों को अपने पक्ष में करने के लिए आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक साधनों का उपयोग कर रही थीं।

4. हथियारों की होड़
शीतयुद्ध (Cold War) के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हथियारों की होड़ ने इस संघर्ष को और गहरा कर दिया। दोनों देश परमाणु हथियारों का निर्माण कर अपनी सैन्य ताकत बढ़ा रहे थे। इस प्रतिस्पर्धा के चलते दुनिया परमाणु युद्ध के खतरे के साए में जी रही थी। हथियारों की यह होड़ न केवल सैन्य शक्ति को दर्शा रही थी, बल्कि यह भी तय कर रही थी कि कौन सी महाशक्ति वैश्विक नेतृत्व में आगे रहेगी।

5. विभाजित यूरोप
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप दो हिस्सों में बंट गया। पश्चिमी यूरोप अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी और लोकतांत्रिक देशों का गढ़ बन गया, जबकि पूर्वी यूरोप सोवियत संघ के नियंत्रण में साम्यवादी व्यवस्था के तहत आ गया। इस विभाजन ने शीतयुद्ध को और गहरा कर दिया, क्योंकि दोनों पक्ष अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र को मजबूत करने में लगे थे। जर्मनी का विभाजन और बर्लिन की दीवार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

6. संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद में संघर्ष
संयुक्त राष्ट्र संघ के गठन के बाद से ही अमेरिका और सोवियत संघ के बीच मतभेद स्पष्ट हो गए। सुरक्षा परिषद में दोनों महाशक्तियों के वीटो पावर का इस्तेमाल कर वे एक-दूसरे के निर्णयों को रोकने की कोशिश करते थे। यह संघर्ष विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर भी दिखा, जहां दोनों देश एक-दूसरे की नीतियों का विरोध करते थे। इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस शीतयुद्ध (Cold War) की परिधि में आ गया।

7. आर्थिक प्रतिस्पर्धा
अमेरिका और सोवियत संघ के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा भी शीतयुद्ध के प्रमुख कारणों में से एक थी। अमेरिका जहां मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था का समर्थक था, वहीं सोवियत संघ सरकारी नियंत्रण वाली समाजवादी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता था। दोनों देश अपने आर्थिक मॉडल को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न देशों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे थे।

8. गठबंधनों का निर्माण
शीतयुद्ध के दौरान वैश्विक स्तर पर गठबंधन बनाने की होड़ मची रही। अमेरिका ने नाटो (NATO) जैसे संगठनों का निर्माण किया, जबकि सोवियत संघ ने वारसा संधि के तहत अपने सहयोगियों को संगठित किया। इन गठबंधनों के माध्यम से दोनों शक्तियां अपनी ताकत बढ़ा रही थीं और अपने-अपने पक्ष को मजबूत कर रही थीं।

9. प्रोपेगैंडा युद्ध
शीतयुद्ध (Cold War) के दौरान प्रोपेगैंडा भी एक प्रमुख हथियार बन गया था। अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही अपनी विचारधाराओं को फैलाने के लिए मीडिया, साहित्य, कला और शिक्षा का इस्तेमाल कर रहे थे। इस प्रोपेगैंडा युद्ध में दोनों पक्ष अपने-अपने विरोधी को कमजोर और अपनी ताकत को बड़ा दिखाने का प्रयास कर रहे थे।

शीतयुद्ध(Cold War) निष्कर्ष

शीतयुद्ध (Cold War) के कारणों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष केवल राजनीतिक या सैन्य स्तर पर नहीं था, बल्कि वैचारिक, आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर भी था। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच यह संघर्ष वैश्विक सत्ता संघर्ष का प्रतीक था, जिसने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। हालांकि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ यह शीतयुद्ध समाप्त हो गया, लेकिन इसके प्रभाव आज भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में देखे जा सकते हैं।

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