prithaktavaad

In this post we are going to discuss about the पृथकतावाद, तटस्थता और गुट निरपेक्षता​

परिचय

पृथकतावाद, तटस्थता और गुट निरपेक्षता तीन प्रमुख विचारधाराएं हैं, जिनका संबंध अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देशों की स्थिति और उनकी विदेश नीतियों से है। ये अवधारणाएं विशेष रूप से शीतयुद्ध के समय में उभर कर सामने आईं, जब विश्व दो ध्रुवों में विभाजित हो गया था – एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी देश, और दूसरी तरफ सोवियत संघ और उसके समर्थक। इस लेख में हम पृथकतावाद, तटस्थता और गुट निरपेक्षता की परिभाषा, उनके अंतर और ऐतिहासिक संदर्भ को विस्तार से समझेंगे।

1. पृथकतावाद (Isolationism)

पृथकतावाद एक ऐसी नीति है जिसमें कोई देश अपने आप को अन्य देशों के राजनीतिक और सैन्य मामलों से दूर रखता है। इस नीति के तहत, देश अंतर्राष्ट्रीय विवादों और गठबंधनों से बचते हुए अपने आंतरिक विकास और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है। पृथकतावाद की नीति का सबसे प्रमुख उदाहरण अमेरिका का है, जिसने प्रथम विश्व युद्ध के पहले और बाद में अपने आप को यूरोप के मामलों से दूर रखने की कोशिश की। इस नीति का उद्देश्य था कि देश को बाहरी संघर्षों से बचाया जाए और उसकी संप्रभुता बनी रहे।

हालांकि, आधुनिक वैश्विक परिदृश्य में, पृथकतावाद की नीति का पालन करना मुश्किल हो गया है। वैश्वीकरण और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के युग में, किसी देश का पूरी तरह से अलग रहना लगभग असंभव हो गया है। फिर भी, पृथकतावाद की अवधारणा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण बनी हुई है।

2. तटस्थता (Neutrality)

तटस्थता एक ऐसी स्थिति है जिसमें कोई देश किसी विशेष अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष या युद्ध में किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करता। तटस्थता का पालन करने वाले देश खुद को युद्ध और संघर्षों से दूर रखते हैं, लेकिन वे अपने कूटनीतिक संबंधों को बनाए रखते हैं। स्विट्जरलैंड तटस्थता का सबसे प्रमुख उदाहरण है। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान स्विट्जरलैंड ने तटस्थता की नीति अपनाई और किसी भी सैन्य संघर्ष में भाग नहीं लिया।

तटस्थता की नीति के पीछे उद्देश्य यह है कि देश शांति बनाए रखें और अपने हितों की रक्षा करें। इस नीति के तहत, तटस्थ देश दूसरे देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखते हैं और मानवीय सहायता, कूटनीति और मध्यस्थता में भूमिका निभाते हैं।

3. गुट निरपेक्षता (Non-Alignment)

गुट निरपेक्षता एक ऐसी नीति है जिसका उद्देश्य किसी भी शक्ति गुट में शामिल न होकर स्वतंत्र और तटस्थ रहना है। गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) की शुरुआत शीतयुद्ध के समय हुई, जब दुनिया दो प्रमुख गुटों में बंटी हुई थी – एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी, और दूसरी तरफ सोवियत संघ और उसके समर्थक। गुट निरपेक्षता का विचार यह था कि विकासशील देश किसी भी गुट में शामिल न होकर अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता बनाए रखें।

1955 में बांडुंग सम्मेलन में, एशिया और अफ्रीका के नेताओं ने गुट निरपेक्षता की नींव रखी। इसके बाद 1961 में बेलग्रेड में पहला गुट निरपेक्ष सम्मेलन हुआ, जिसमें जवाहरलाल नेहरू, तितो, गमाल अब्दुल नासर और अन्य नेताओं ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को आकार दिया। इस आंदोलन का उद्देश्य था कि छोटे और विकासशील देश अपनी नीति स्वतंत्र रूप से तय करें, बिना किसी दबाव या बाहरी हस्तक्षेप के।

तीनों अवधारणाओं में अंतर

पृथकतावाद, तटस्थता और गुट निरपेक्षता में कुछ समानताएं हैं, लेकिन इनके उद्देश्यों और नीतियों में भी महत्वपूर्ण अंतर है।

  1. पृथकतावाद अंतर्राष्ट्रीय मामलों से पूरी तरह से दूर रहने की बात करता है, जबकि तटस्थता में देश किसी भी संघर्ष में भाग नहीं लेता, लेकिन वह कूटनीतिक संबंध बनाए रखता है।
  2. गुट निरपेक्षता में देश किसी भी शक्ति गुट का हिस्सा नहीं बनता, लेकिन वह सक्रिय रूप से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका निभाता है और अपनी नीति तय करता है।
  3. पृथकतावाद का पालन करने वाले देश स्वयं को वैश्विक राजनीति से अलग रखते हैं, जबकि तटस्थ और गुट निरपेक्ष देश सक्रिय रूप से शांति, विकास और कूटनीति में हिस्सा लेते हैं।

निष्कर्ष

पृथकतावाद, तटस्थता और गुट निरपेक्षता तीनों ही महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय नीतियां हैं, जो किसी देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता और विदेश नीति को परिभाषित करती हैं। आज की वैश्विक राजनीति में जहां देशों के बीच संबंध जटिल हो गए हैं, इन नीतियों का अध्ययन और समझना आवश्यक है। गुट निरपेक्षता का आंदोलन आज भी महत्वपूर्ण है, खासकर विकासशील देशों के संदर्भ में, क्योंकि यह उन्हें स्वतंत्र निर्णय लेने और बाहरी हस्तक्षेप से बचने की प्रेरणा देता है।

आधुनिक दुनिया में, हालांकि, इन नीतियों का पालन करना आसान नहीं है। वैश्वीकरण और परस्पर निर्भरता के इस युग में, कोई भी देश पूरी तरह से अलग या तटस्थ नहीं रह सकता। फिर भी, इन अवधारणाओं की ऐतिहासिक और राजनीतिक प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।

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