In this post we are going to discuss about the मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms)
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms)
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) भारतीय उपनिवेशी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह सुधार 1909 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश किए गए थे और इनका उद्देश्य भारतीय राजनीतिक ढांचे में कुछ बदलाव करना था। इस लेख में हम मॉर्ले-मिंटो सुधारों के विभिन्न पहलुओं को समझेंगे।
मॉर्ले-मिंटो सुधारों ने क्या पेश किया?
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव पेश किए। इनमें प्रमुख बदलाव थे:
- विधायी परिषदों का विस्तार: केंद्रीय और प्रांतीय विधायी परिषदों का आकार बढ़ाया गया।
- अलग निर्वाचक मंडल: मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की व्यवस्था की गई।
- भारतीय प्रतिनिधित्व: विधायी परिषदों में भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई।
- प्रतिनिधित्व का विस्तार: कुछ गैर-सरकारी सदस्यों को निर्वाचित करने का अधिकार दिया गया।
मॉर्ले-मिंटो के सुधारों से आप क्या समझते हैं?
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) से यह समझा जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करने की शुरुआत की। हालांकि, यह सुधार सीमित थे और भारतीयों को वास्तविक शक्ति नहीं दी गई थी। ये सुधार भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के बढ़ते दबाव का परिणाम थे।
मॉर्ले-मिंटो सुधारों का महत्व क्या है?
मॉर्ले-मिंटो सुधारों का महत्व इस प्रकार है:
- राजनीतिक जागरूकता: इन सुधारों ने भारतीयों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई।
- संविधानिक विकास: भारतीय संविधान के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुए।
- अलग निर्वाचक मंडल: मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की व्यवस्था ने भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता का बीज बोया।
- भारतीय प्रतिनिधित्व: इन सुधारों ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन में प्रतिनिधित्व का अनुभव कराया।
मॉर्ले मिंटो सुधार के समय भारत का वायसराय कौन था?
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) के समय भारत के वायसराय लॉर्ड मिंटो थे। लॉर्ड मिंटो ने 1905 से 1910 तक भारत के वायसराय के रूप में कार्य किया। इनके कार्यकाल में ही मॉर्ले-मिंटो सुधार लागू किए गए।
मॉर्ले-मिंटो सुधारों के महत्वपूर्ण प्रावधान क्या थे?
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) के महत्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित थे:
- विधायी परिषदों का विस्तार: केंद्रीय और प्रांतीय विधायी परिषदों का आकार बढ़ाया गया।
- अलग निर्वाचक मंडल: मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की व्यवस्था की गई।
- भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई: केंद्रीय और प्रांतीय विधायी परिषदों में भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई।
- प्रतिनिधित्व का विस्तार: कुछ गैर-सरकारी सदस्यों को निर्वाचित करने का अधिकार दिया गया।
मिंटो-मॉर्ले के सुधार से देश का विभाजन कैसे हुआ?
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) ने भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता का बीज बोया। मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की व्यवस्था ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विभाजन को गहरा किया। इस विभाजन ने भारतीय समाज में सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया और बाद में भारत के विभाजन (1947) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लॉर्ड मिंटो का कार्यकाल क्या था?
लॉर्ड मिंटो का कार्यकाल 1905 से 1910 तक था। इनके कार्यकाल में ही मॉर्ले-मिंटो सुधार लागू किए गए। इन सुधारों ने भारतीय राजनीतिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव लाए।
मार्ले मिंटो कौन था?
मार्ले मिंटो, जिनका पूरा नाम गिल्बर्ट जॉन एलियट-मरे-किनिनमौंड था, ब्रिटिश राजनेता थे जो 1905 से 1910 तक भारत के वायसराय के रूप में कार्यरत थे। इन्हीं के नाम पर मॉर्ले-मिंटो सुधारों का नाम रखा गया है।
निष्कर्ष
मॉर्ले-मिंटो सुधार (Morley Minto Reforms) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और जटिल अध्याय है। इन सुधारों ने भारतीय राजनीति में कुछ बदलाव लाए और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के बढ़ते दबाव का परिणाम थे। हालांकि, इन सुधारों ने भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता का बीज बोया और बाद में भारत के विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मॉर्ले-मिंटो सुधारों का प्रभाव भारतीय राजनीति पर गहरा और स्थायी रहा, जिसने भारत की स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को भी प्रभावित किया।
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