मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev)

In this post we are going to discuss about the मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev)​

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) – सोवियत संघ के अंतिम नेता की जीवन गाथा

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) सोवियत संघ के अंतिम नेता थे और उनका नाम इतिहास में उस व्यक्ति के रूप में दर्ज है, जिसने न केवल सोवियत संघ के भविष्य को बदला, बल्कि वैश्विक राजनीति को भी एक नए मोड़ पर पहुंचाया। उनकी नीतियों ने शीत युद्ध के अंत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनके प्रयासों ने दुनिया को एक नए राजनीतिक और आर्थिक युग में प्रवेश करने में मदद की।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

मिखाइल सेर्गेयेविच गोर्बाचेव का जन्म 2 मार्च 1931 को रूस के स्टावरोपोल क्राय क्षेत्र के प्रिवोलनोय नामक गांव में हुआ था। उनका परिवार एक साधारण किसान परिवार था और बचपन से ही उन्होंने कठिनाइयों का सामना किया। गोर्बाचेव ने स्टावरोपोल कृषि संस्थान से कानून की पढ़ाई की और उसके बाद मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

राजनीतिक करियर की शुरुआत

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) ने 1952 में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी (CPSU) में प्रवेश किया। उनका राजनीतिक करियर तेजी से आगे बढ़ा, और 1970 के दशक तक वे पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो गए। उनकी मेहनत, दूरदर्शिता, और लोगों से जुड़े रहने की क्षमता ने उन्हें पार्टी के भीतर सम्मान दिलाया।

सोवियत संघ का नेतृत्व

1985 में, मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) को सोवियत संघ का महासचिव नियुक्त किया गया, जो उस समय देश का सबसे शक्तिशाली पद था। उन्होंने सत्ता में आने के बाद ‘पेरेस्त्रोइका’ (पुनर्निर्माण) और ‘ग्लासनोस्त’ (खुलापन) की नीतियों को लागू किया। इन नीतियों का उद्देश्य सोवियत संघ की स्थिरता और अर्थव्यवस्था को सुधारना था। गोर्बाचेव ने महसूस किया कि सोवियत संघ की जड़ता और राजनीतिक रुढ़िवाद ने देश को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर कर दिया है।

पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त

पेरेस्त्रोइका का अर्थ था आर्थिक सुधार और प्रशासनिक ढांचे में परिवर्तन, जबकि ग्लासनोस्त का उद्देश्य समाज और सरकार में पारदर्शिता और खुलापन लाना था। इन नीतियों ने सोवियत समाज को अभूतपूर्व स्वतंत्रता दी, लेकिन साथ ही साम्राज्य की जड़ें कमजोर कर दीं। प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक आलोचना को जगह मिलने लगी, जिससे शासन तंत्र में अस्थिरता आने लगी।

शीत युद्ध का अंत

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) की नीतियों का एक प्रमुख परिणाम शीत युद्ध का अंत था। उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के साथ कई शिखर वार्ताएं कीं, जिनमें दोनों देशों ने परमाणु हथियारों की संख्या को सीमित करने के समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इन वार्ताओं ने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव को कम करने में मदद की और यूरोप में स्थिरता को बढ़ावा दिया।

सोवियत संघ का विघटन

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) की नीतियों के परिणामस्वरूप सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्यों में स्वतंत्रता की लहर दौड़ गई। बाल्टिक राज्यों और पूर्वी यूरोप के कई देशों ने सोवियत संघ से अलग होने की मांग की। 1991 तक, स्थिति इतनी बिगड़ गई कि सोवियत संघ के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया। 25 दिसंबर 1991 को, मिखाइल गोर्बाचेव ने सोवियत संघ के राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया, और अगले दिन सोवियत संघ का विघटन हो गया।

विरासत और आलोचना

हालांकि मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) को पश्चिमी देशों में एक महान नेता और सुधारक के रूप में देखा जाता है, लेकिन रूस में उनकी विरासत मिश्रित रही है। कई रूसी नागरिकों का मानना है कि उनकी नीतियों ने सोवियत संघ को कमजोर किया और देश को एक बड़े राजनीतिक और आर्थिक संकट में धकेल दिया।

हालांकि, यह भी सत्य है कि गोर्बाचेव के बिना, सोवियत संघ में लोकतांत्रिक सुधारों की शुरुआत नहीं होती और विश्व में परमाणु तनाव को कम करने में इतनी प्रगति नहीं होती।

व्यक्तिगत जीवन और अंतिम समय

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) की पत्नी, रायसा गोर्बाचेवा, उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण साथी थीं। रायसा का 1999 में निधन हो गया, जिससे गोर्बाचेव को गहरा धक्का लगा। गोर्बाचेव ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में सामाजिक कार्यों और पर्यावरण के मुद्दों पर काम किया। 30 अगस्त 2022 को मिखाइल गोर्बाचेव का निधन हो गया, जिससे एक युग का अंत हुआ।

निष्कर्ष

मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) का जीवन और कार्य विवादित हो सकते हैं, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। वे उस नेता के रूप में याद किए जाएंगे, जिसने परिवर्तन के बीज बोए और सोवियत संघ के अंतिम दिनों में एक नई दुनिया के द्वार खोले। उनका जीवन एक ऐसी कहानी है, जिसमें साहस, नेतृत्व और सुधारों के प्रति दृढ़ संकल्प का प्रतीक दिखता है।

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