gut nirpeksh ka kaaran in hindia

भूमिका

गुट निरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) 20वीं शताब्दी का एक प्रमुख राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयास था, जिसमें दुनिया के कई देश शीतयुद्ध के दौरान किसी भी महाशक्ति गुट का हिस्सा बनने से इनकार करते थे। यह आंदोलन उन देशों के लिए था, जो ना तो पश्चिमी ब्लॉक के समर्थन में थे, जिसमें अमेरिका और उसके सहयोगी शामिल थे, और ना ही पूर्वी ब्लॉक के, जिसमें सोवियत संघ और उसके सहयोगी थे। इस लेख में हम गुट निरपेक्ष आंदोलन के प्रमुख कारणों पर विचार करेंगे।

शीतयुद्ध और गुटों का उदय

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद वैश्विक राजनीति में तीव्र बदलाव आया। विश्व दो प्रमुख गुटों में बंट गया: एक तरफ था पश्चिमी गुट, जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था और दूसरी तरफ था पूर्वी गुट, जिसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। इन दोनों गुटों के बीच वैचारिक मतभेद थे, जहां एक गुट पूंजीवाद को बढ़ावा दे रहा था तो दूसरा साम्यवाद का समर्थन कर रहा था। इसी शीतयुद्ध के माहौल में दुनिया के छोटे और नव स्वतंत्र देशों के सामने चुनौती थी कि वे किस गुट का हिस्सा बनें।

स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा

गुट निरपेक्ष आंदोलन के पीछे सबसे प्रमुख कारण था नव स्वतंत्र देशों की स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कई एशियाई, अफ्रीकी और लातिनी अमेरिकी देशों ने उपनिवेशवाद से मुक्ति पाई थी। ये देश नहीं चाहते थे कि वे फिर से किसी नए प्रकार के उपनिवेशवाद या महाशक्ति के अधीन हो जाएं। उन्हें डर था कि अगर वे किसी गुट का हिस्सा बनेंगे तो उनकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। इसलिए उन्होंने गुट निरपेक्षता को चुना ताकि वे अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता को सुरक्षित रख सकें।

वैश्विक शांति और स्थिरता का लक्ष्य

गुट निरपेक्ष आंदोलन का एक और प्रमुख कारण था वैश्विक शांति और स्थिरता का लक्ष्य। दुनिया के कई देशों ने महसूस किया कि शीतयुद्ध के माहौल में गुटबंदी से टकराव और युद्ध की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। इसलिए, उन्होंने किसी भी गुट में शामिल होने से परहेज किया ताकि वे एक तटस्थ भूमिका निभाकर वैश्विक शांति में योगदान कर सकें। गुट निरपेक्ष आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था, देशों को एकजुट करके संघर्षों और तनावों को कम करना।

उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरोध

गुट निरपेक्ष आंदोलन का एक और कारण उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज उठाना था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भी कई देश उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का सामना कर रहे थे। गुट निरपेक्षता का सिद्धांत उन देशों को समर्थन प्रदान करता था जो अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस आंदोलन के माध्यम से साम्राज्यवाद के खिलाफ एकजुटता बनी और यह सुनिश्चित किया गया कि उपनिवेशवाद का अंत हो सके।

आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता

नव स्वतंत्र देशों के लिए गुट निरपेक्षता का एक और बड़ा कारण था आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता। ये देश अपने संसाधनों का उपयोग करके अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहते थे, बिना किसी महाशक्ति के दबाव या नियंत्रण में आए। गुट निरपेक्ष आंदोलन के माध्यम से ये देश अपनी आर्थिक नीतियों को स्वतंत्र रूप से तय कर सकते थे और वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को सुधार सकते थे।

राजनीतिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान

गुट निरपेक्ष आंदोलन का एक और महत्वपूर्ण कारण था राजनीतिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान। विभिन्न देशों की अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान थी, जिसे वे बनाए रखना चाहते थे। किसी गुट में शामिल होने से उन्हें अपनी पहचान खोने का डर था। इसलिए, गुट निरपेक्षता के माध्यम से उन्होंने अपनी राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा।

प्रमुख नेताओं की भूमिका

गुट निरपेक्ष आंदोलन के उदय में प्रमुख नेताओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर, युगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टिटो, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो और घाना के राष्ट्रपति क्वामे नक्रूमा जैसे नेताओं ने इस आंदोलन को आकार दिया। इन नेताओं का मानना था कि दुनिया को शांति और स्थिरता के लिए तटस्थ रहना चाहिए, और इसी विचारधारा ने गुट निरपेक्ष आंदोलन को बढ़ावा दिया।

निष्कर्ष

गुट निरपेक्ष आंदोलन के उदय के पीछे कई कारण थे, जिनमें स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा, वैश्विक शांति का लक्ष्य, उपनिवेशवाद का विरोध, आर्थिक विकास की इच्छा, और राजनीतिक विविधता का सम्मान शामिल था। यह आंदोलन उन देशों की आवाज बना जो किसी भी महाशक्ति के दबाव में नहीं आना चाहते थे और स्वतंत्र रूप से अपने हितों की रक्षा करना चाहते थे। गुट निरपेक्ष आंदोलन आज भी वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसके सिद्धांत और उद्देश्यों की प्रासंगिकता बनी हुई है।

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