Forest Society and Colonialism Class 9 Notes History Chapter 4

Forest Society and Colonialism Class 9 Notes History Chapter 4

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वन समाज और औपनिवेशिकता (Forest Society and Colonialism)

परिचय:

1. औपनिवेशिक काल में, भारतीय वन समाज का परिवर्तन कैसे हुआ, इसे समझना महत्वपूर्ण है.

2. औपनिवेशिक शासनकाल में, वनों का उपयोग आराम से नहीं किया गया, बल्कि उन्हें आयाती शासन के लिए उपयोग किया गया.

औपनिवेशिक वन प्रबंधन:

1. ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में वनों का प्रबंधन करने के लिए विभिन्न नीतियों की शुरुआत की.

2. १८६६ में भारतीय वनों का पहला वन संहिता पास किया गया, जिसमें वनों का उपयोग वन्यजीवों की खोपड़ी, लकड़ी और अन्य आवश्यकताओं के लिए किया जा सकता था.

3. यह संहिता वनों के लोगों के जीवन पर बुरे प्रभाव डाली, क्योंकि उनका पारंपरिक जीवन वनों के संरक्षण और संवर्धन पर आधारित था.

औपनिवेशिक समुदाय और वन:

1. औपनिवेशिक काल में, वनों में रहने वाले लोगों को ‘आदिवासी’ या ‘जनजाति’ कहा जाता था.

2. वनों के आदिवासी समुदायों का जीवन वन्यजीवों पर आधारित था और उनकी सभी आवश्यकताएँ वन से ही पूरी होती थीं.

औपनिवेशिकता के प्रभाव:

1. औपनिवेशिकता के दौरान, वनों के संरक्षण और संवर्धन की परिकल्पना को बदल दिया गया। ब्रिटिश साम्राज्य के आने के पश्चात्, वनों को केवल वन्यजीवों और लकड़ी की खोपड़ी का स्त्रोत माना गया, जिससे वन समुदायों के जीवन पर असर पड़ा।

2. आदिवासी समुदायों की पारंपरिक धार्मिक और सांस्कृतिक अद्यतन को प्रभावित किया गया। उनकी परंपरागत जीवनशैली को बदलकर उन्हें बाहरी संस्कृतियों के प्रति आकर्षित किया गया।

3. आदिवासी समुदायों की सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन हुआ। परंपरागत समाज में जो वर्गवाद और आदिवासी समुदायों का विशेष स्थान था, वह धीरे-धीरे कम हो गया और समाज में उनकी स्थिति कमजोर हो गई।

आंदोलन और प्रतिरोध:

1. औपनिवेशिकता के खिलाफ आदिवासी समुदायों में आंदोलन और प्रतिरोध उठे। वे अपनी ज़मीन, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने लगे।

2. जुमला आंदोलन, संबलपुर आंदोलन, बसोदा आंदोलन आदि उन आंदोलनों में से कुछ थे जिनमें आदिवासी समुदायें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया।

ब्रिटिश साम्राज्य की वन नीतियाँ:

1. ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में वनों की खोज और उपयोग के लिए वन सर्वेक्षण विभाग की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य था भारत के वन संसाधनों को पहचानना और उन्हें उपयोग में लाना।

2. वन संरक्षण के लिए ब्रिटिश सरकार ने ‘सर देओरा वन संरक्षण संघ’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था वनों की रक्षा और प्रबंधन करना।

3. वनों के संशोधित प्रबंधन के तहत, ब्रिटिश सरकार ने ‘वनों का पुनर्वन्यन’ कार्यक्रम आरंभ किया, जिसका उद्देश्य था पुनः वनों को बढ़ावा देना और लकड़ी के उपयोग को सुनिश्चित करना।

वन्यजीव संरक्षण:

1. ब्रिटिश साम्राज्य के आने के बाद, वन्यजीवों की संरक्षण की प्रक्रिया में भी बदलाव हुआ। ब्रिटिश सरकार ने ‘वन्यजीव संरक्षण अधिनियम’ पास किया, जिसका उद्देश्य था वन्यजीवों की रक्षा और उनके शिकार की प्रबंधन करना।

2. इस अधिनियम के तहत, ब्रिटिश सरकार ने वन्यजीवों के शिकार को नियंत्रित किया और उनके खिलाफ अत्याचार को रोकने की कोशिश की। इससे वन्यजीवों के संरक्षण में सुधार हुआ।

आदिवासी संघर्ष:

1. आदिवासी समुदायें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ समृद्धि के लिए संघर्ष किये।

2. १९॰० के दशक में, बिरसा मुंडा ने उन्हें वनों की ज़मीन और अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।

सामाजिक परिवर्तन:

1. वनों के साथी आदिवासी समुदायों का जीवन जंगलों से संबंधित था, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के आने के साथ, उनकी ज़मीन छीनी जा रही थी और उन्हें नगरों में बसने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

2. उनकी पारंपरिक जीवनशैली, सांस्कृतिक प्रथाएँ और ज़ुबानियात की समस्याओं का समाधान निकालने में कई समुदायों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा।

ब्रिटिश और वन समाज:

1. ब्रिटिश साम्राज्य के आने के पश्चात्, उन्होंने वनों का प्रबंधन अपने स्वायत्त प्राथमिकताओं के अनुसार किया। इससे वन समाजों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

2. उन्होंने वनों को केवल वन्यजीवों और लकड़ी की खोपड़ी का स्रोत माना और आदिवासी समुदायों के परंपरागत संसाधनों को ध्वनित किया।

वन समुदायों का जीवन:

1. वन समुदायों का जीवन वनों के साथ संबंधित था और उनकी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवनशैली वनों के परिपर्णता पर आधारित थी।

2. उनकी जीवनशैली वन्यजीवों की खोज, शिकार और गेंदबाज़ी पर आधारित थी, जिससे उनका संबंध अपने पर्यावरण से गहरा था।

औपनिवेशिकता का प्रभाव:

1. वन समाजों पर औपनिवेशिकता का प्रभाव विशेष रूप से उनकी सांस्कृतिक और आर्थिक जीवनशैली पर पड़ा।

2. उन्हें उनकी परंपरागत ज़मीनों से बाहर मजबूर किया गया, जिससे उन्हें नए समृद्धि संसाधनों का सामना करना पड़ा।

आदिवासी संघर्ष:

1. औपनिवेशिकता के दौरान, आदिवासी समुदायों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। वे अपनी ज़मीन, संस्कृति, और परंपरागत समाज से जुड़े हुए थे और उन्हें इन सबकी रक्षा करने का हक मानते थे।

2. बिरसा मुंडा, झन्झवी भाई, सिड्धो और कानू मुंडा जैसे नेता उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज उठाई और अपने अधिकारों की मांग की।

औपनिवेशिक वन प्रबंधन के प्रभाव:

1. औपनिवेशिकता के दौरान, वनों के प्रबंधन का तरीका बदल गया। ब्रिटिश साम्राज्य ने उन्हें उपयोगी वन्यजीवों और लकड़ी की खोपड़ी के लिए मात्र स्रोत के रूप में देखने लगा, जिससे वन समुदायों के पारंपरिक जीवन पर बुरा असर पड़ा।

2. औपनिवेशिक वन प्रबंधन ने वनों के आदिवासी समुदायों के पारंपरिक जीवनशैली को खतरे में डाल दिया। उनकी परंपरागत जीवनशैली वनों के संरक्षण और संवर्धन पर आधारित थी, लेकिन अब उन्हें उनकी ज़मीन छीन ली गई और उन्हें वनों से बाहर निकलने के लिए मजबूर किया गया।

वन्यजीवों के महत्व:

1. वन्यजीवों का महत्व वन समुदायों के जीवन में बहुत अधिक था। वन्यजीव उनके आहार, वस्त्र और आवश्यकताओं के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण थे।

2. उनकी परंपरागत ज्ञानवर्धनी और जानकारी वन समुदायों के लिए महत्वपूर्ण थी, जिन्हें वनों के संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करने की जानकारी थी।

वन समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर:

1. वन समुदायों की सांस्कृतिक धरोहर वन्यजीवों के साथ-साथ उनकी समाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवनशैली के अहम हिस्से थी।

2. उनकी कथाएँ, गीत, नृत्य और धार्मिक आचरण उनकी सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक थे और उन्हें उनकी परंपरागत जीवनशैली का संरक्षक माध्यम मिलता था।

ब्रिटिश वन्यजीव संरक्षण के उद्देश्य:

1. ब्रिटिश साम्राज्य ने वन्यजीव संरक्षण के नाम पर वनों के संसाधनों की प्रबंधन में नए तरीकों की प्रवृत्ति दिखाई।

2. उनका मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश शासन के लिए आवश्यक वन्यजीवों के स्रोत को सुरक्षित रखना और उन्हें उपयोग में लाना।

वन समुदायों के संघर्ष का कारण:

औपनिवेशिकता के समय, वन समुदायों के जीवन पर उनके पारंपरिक संसाधनों का असर हुआ। ब्रिटिश साम्राज्य ने उनकी ज़मीन और संसाधनों पर कब्ज़ा किया, जिससे उन्हें उनके आधिकारों की रक्षा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

आदिवासी संघर्ष के प्रति सहायता:

1. महात्मा गांधी और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने आदिवासी समुदायों के संघर्ष को सहायता प्रदान की। उन्होंने उनके अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. आदिवासी समुदायों के संघर्ष ने स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और उनके संघर्ष ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी सशक्त किया।

निष्कर्ष:

वन समाज और औपनिवेशिकता के बीच का अध्ययन हमें यह दिखाता है कि ब्रिटिश साम्राज्य के आने के पश्चात् कैसे वन समाजों के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में बदलाव आया और कैसे आदिवासी समुदायों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया।

परीक्षा उपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्न जो मुख्यतः परीक्षाओं में देखे जाते हैं। 

प्रश्न 1: औपनिवेशिकता का वन समाज पर कैसा प्रभाव पड़ा?

उत्तर: औपनिवेशिकता के समय में, वन समाज को बड़े परिवर्तन का सामना करना पड़ा। उनकी पारंपरिक जीवनशैली बदलकर उन्हें नई सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। उनकी ज़मीन छीनी गई, उन्हें अनजाने में शहरों में नौकरियों की तलाश करनी पड़ी और उन्हें नए जीवनशैली का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 2: वन समुदायों का पारंपरिक जीवन कैसा था और वन्यजीवों से उनका कैसा संबंध था?

उत्तर: वन समुदायों का जीवन वन्यजीवों पर आधारित था। उनकी पारंपरिक आदतें और जीवनशैली मुख्य रूप से वन से ही जुड़ी थीं। उन्होंने वन्यफल, वन्यजीवों की खोपड़ी, लकड़ी आदि का उपयोग किया और उनके साथ एक संरक्षक और संवर्धक संबंध रखा।

प्रश्न 3: वन संहिता 1866 क्या थी और उसका क्या मकसद था?

उत्तर: वन संहिता 1866 एक कानून था जिसे ब्रिटिश साम्राज्य ने पास किया था। इस संहिता के माध्यम से वनों का प्रबंधन किया जाता था और उनका उपयोग वन्यजीवों की खोपड़ी, लकड़ी और अन्य आवश्यकताओं के लिए किया जा सकता था।

प्रश्न 4: औपनिवेशिकता के काल में आदिवासी समुदायों का जीवन कैसे परिवर्तित हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के काल में, आदिवासी समुदायों का जीवन परिवर्तित हो गया। उनकी ज़मीन छीनी गई और उन्हें वनों से बाहर बसने के लिए मजबूर किया गया। उन्हें अनजाने में शहरों में नौकरियों की तलाश करनी पड़ी और उनकी पारंपरिक जीवनशैली में बड़े परिवर्तन हुए।

प्रश्न 5: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच क्या अंतर था?

उत्तर: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच अंतर था। वन समाज जीवन्य जीविका पर आधारित था और उनका संबंध वन्यजीवों से था। वन्यजीवों का उपयोग वन समुदायों के लिए आवश्यक था। औपनिवेशिक समाज में, औद्योगिकीकरण और नगरीकरण के साथ जीवन में बदलाव आया और आदिवासी समुदायों को नए संवास्थानों में बसना पड़ा।

प्रश्न 6: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच संघर्ष क्यों उत्पन्न हुआ?

उत्तर: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच संघर्ष उत्पन्न हुआ क्योंकि औपनिवेशिक समाज ने वनों का उपयोग अपने आर्थिक लाभ के लिए किया, जिससे वन समाज के लोगों की पारंपरिक जीवनशैली पर बुरा प्रभाव पड़ा। यह संघर्ष समय-समय पर बड़े आंदोलनों में रूप लेता था।

प्रश्न 7: औपनिवेशिकता के कारण आदिवासी समुदायों की स्थिति कैसी हो गई?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, आदिवासी समुदायों की स्थिति मुश्किल हो गई। उनकी पारंपरिक जीवनशैली पर प्रभाव पड़कर उन्हें नये और अजनबी परिस्थितियों में अड़पने का सामना करना पड़ा। उनकी ज़मीन छीन ली गई और उन्हें वनों से बाहर निकलकर अन्य क्षेत्रों में काम करना पड़ा।

प्रश्न 8: औपनिवेशिक समाज में वन्यजीवों के प्रति दृष्टिकोण में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिक समाज में वन्यजीवों के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ। पहले, वन्यजीवों का उपयोग आदिवासी समुदायों की आवश्यकताओं के लिए होता था। लेकिन औपनिवेशिक समाज में, वन्यजीवों को व्यापार, उद्योग और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोग किया जाने लगा।

प्रश्न 9: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच समाजिक और आर्थिक असमानता कैसे बढ़ी?

उत्तर: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच समाजिक और आर्थिक असमानता बढ़ गई। औपनिवेशिक समाज में, वन्यजीवों के संसाधनों का उपयोग व्यापारिक और आर्थिक लाभ के लिए किया जाने लगा, जिससे समाज में धन की असमानता बढ़ गई।

प्रश्न 10: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच संघर्ष कैसे समाप्त हुआ?

उत्तर: वन समाज और औपनिवेशिक समाज के बीच संघर्ष विभिन्न समयों में आंदोलनों और समझौतों के माध्यम से समाप्त हुआ। आदिवासी समुदायों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उठाए आंदोलनों और आपसी समझौतों के माध्यम से समाज में सुधार करने का प्रयास किया।

प्रश्न 11: औपनिवेशिकता के कारण वन समुदायों की सामाजिक संरचना में कैसे बदलाव हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के परिणामस्वरूप, वन समुदायों की सामाजिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ। पहले वन समुदायों का संगठन परंपरागत था, जिसमें उनके स्थानीय नेताओं का महत्व था। लेकिन औपनिवेशिकता के आने के साथ, उनका समूहिक जीवन टूट गया और वे अधिकांशत: नगरों में जाकर नौकरियों की तलाश करने लगे।

प्रश्न 12: औपनिवेशिकता के कारण वन्यजीवों के प्रति वन समुदायों का दृष्टिकोण कैसा बदल गया?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, वन समुदायों का वन्यजीवों के प्रति दृष्टिकोण बदल गया। पहले वन्यजीवों का संरक्षण और संवर्धन उनके संस्कृति का हिस्सा था, लेकिन औपनिवेशिकता के साथ, वन समुदायों ने उन्हें आर्थिक उपायोग के रूप में देखने लगा।

प्रश्न 13: वन समाज के लोगों को औपनिवेशिकता के समय में कैसे प्रौद्योगिकीकरण का सामना करना पड़ा?

उत्तर: औपनिवेशिकता के समय में, वन समाज के लोगों को प्रौद्योगिकीकरण का सामना करना पड़ा। उन्हें शहरों में नौकरियों की तलाश करनी पड़ी और उन्हें नए और अजनबी प्रौद्योगिकी के साथ काम करना और रहना पड़ा।

प्रश्न 14: औपनिवेशिक समाज के लोगों को वन्यजीवों के प्रति अपने दृष्टिकोण में कैसे परिवर्तन देखने को मिला?

उत्तर: औपनिवेशिक समाज के लोगों को वन्यजीवों के प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन देखने को मिला। उन्हें वन्यजीवों का उपयोग अधिकारिक और आर्थिक गतिविधियों के लिए करने का अधिक मौका मिला।

प्रश्न 15: औपनिवेशिकता के दौरान आदिवासी समुदायों की आर्थिक स्थिति में कैसे बदलाव हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के दौरान, आदिवासी समुदायों की आर्थिक स्थिति में बदलाव हुआ। उनका पारंपरिक आयबच्चे पर आधारित जीवन वन्यजीवों की खोपड़ी, लकड़ी, वन्यफल आदि के व्यापार में शामिल होने से बदल गया।

प्रश्न 16: औपनिवेशिकता के कारण वन्यजीवों की संख्या में कैसे कमी आई?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, वन्यजीवों की संख्या में कमी आई। औपनिवेशिकता के समय में, वन्यजीवों का उपयोग वन्यजीवों की खोपड़ी, लकड़ी, वन्यफल आदि के उद्योगों में किया गया, जिससे उनकी संख्या कम हो गई।

प्रश्न 17: औपनिवेशिकता के परिणामस्वरूप आदिवासी समुदायों की जीवनशैली कैसी बदल गई?

उत्तर: औपनिवेशिकता के परिणामस्वरूप, आदिवासी समुदायों की जीवनशैली में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ। उनका पारंपरिक जीवन वन्यजीवों पर आधारित था, लेकिन औपनिवेशिकता के बाद उनके जीवन में औद्योगिकीकरण और नगरीकरण के साथ बदलाव आया।

प्रश्न 18: औपनिवेशिकता के कारण आदिवासी समुदायों की शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण में कैसे परिवर्तन आया?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, आदिवासी समुदायों की शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। उन्हें अधिकांशत: शिक्षा के महत्व का अनुभव हुआ और वे शिक्षा के लिए अधिक उत्सुक होने लगे।

प्रश्न 19: औपनिवेशिकता के कारण आदिवासी समुदायों की सामाजिक स्थिति में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, आदिवासी समुदायों की सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ। उन्हें शिक्षा और अन्य आर्थिक गतिविधियों के आवसर मिले, जिससे उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार आया।

प्रश्न 20: औपनिवेशिकता के कारण वन समुदायों की भूमि संरचना में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, वन समुदायों की भूमि संरचना में परिवर्तन हुआ। उनकी पारंपरिक जमीन छीनी गई और उन्हें नए स्थानों में बसने के लिए मजबूर किया गया, जिससे उनकी भूमि संरचना में बदलाव आया।

प्रश्न 21: औपनिवेशिकता के कारण वन समुदायों की साहित्यिक और कला संस्कृति में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, वन समुदायों की साहित्यिक और कला संस्कृति में परिवर्तन हुआ। उनकी पारंपरिक कथाएँ, गाने और कलाएँ धीरे-धीरे अपने मूल रूज़ से दूर हो गई और उन्हें मॉडर्न साहित्य और कला के प्रति आकर्षण बढ़ा।

प्रश्न 22: औपनिवेशिकता के कारण वन समुदायों की जाति और जाति के असमानता में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, वन समुदायों की जाति और जाति के असमानता में बदलाव हुआ। औपनिवेशिक समाज में, उनकी जाति के परिप्रेक्ष्य में नये दृष्टिकोण आये और उन्हें सामाजिक और आर्थिक उपायोग में दिखने लगा।

प्रश्न 23: औपनिवेशिकता के कारण वन समुदायों के संगठन और राजनीतिक सहयोग में कैसे परिवर्तन आया?

उत्तर: औपनिवेशिकता के कारण, वन समुदायों के संगठन और राजनीतिक सहयोग में परिवर्तन आया। उन्हें अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता महसूस हुई और वे अधिकारों की मांग के लिए संगठित हो गए।

प्रश्न 24: औपनिवेशिकता के बाद वन समुदायों की आर्थिक आवश्यकताओं में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के बाद, वन समुदायों की आर्थिक आवश्यकताओं में परिवर्तन हुआ। उन्हें पारंपरिक आयबच्चे के साथ साथ नई आर्थिक गतिविधियों की तलाश हुई और उन्हें नये आर्थिक माध्यमों में काम करना पड़ा।

प्रश्न 25: औपनिवेशिकता के परिणामस्वरूप वन समुदायों की सामाजिक समृद्धि में कैसे परिवर्तन हुआ?

उत्तर: औपनिवेशिकता के परिणामस्वरूप, वन समुदायों की सामाजिक समृद्धि में सुधार हुआ। उन्हें शिक्षा, विशेषज्ञता और नये क्षेत्रों में काम करने का मौका मिला, जिससे उनकी सामाजिक समृद्धि में वृद्धि हुई।

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