Bhartiya Swatantrata Andolan

In this post we are going to discuss about the Bhartiya Swatantrata Andolan.

परिचय

आज इस पाठ में हम आप पढ़ने वाले हैं भारतीय स्वतंतत्रता आंदोलन के बारे में। किस प्रकार से यह शुरू और क्या-क्या हुआ सभी बिंदुओं को हम पढ़ने वाले हैं।

भारतीय स्वतंतत्रता आंदोलन Bhartiya Swatantrata Andolan

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 19वीं और 20वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह वही आंदोलन है जिसने भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता दिलाई। यह आंदोलन अनेकों विचारधाराओं, रणनीतियों और संघर्षों का एक बड़ा सा संगम था जिसमें करोड़ों भारतीयों ने अपने देश की आजादी के लिए स्वयं का योगदान दिया। देश में इस आंदोलन की शुरुआत 1857 की क्रांति से मानी जा सकती है, जिसको भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है।

1857 का विद्रोह

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन Bhartiya Swatantrata Andolan की शुरुआत यदि हम देखें तो 1857 का विद्रोह ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रथम संगठित प्रयास था। इसको ही ‘सिपाही विद्रोह’ भी कहा जाता है क्योंकि इसकी शुरुआत भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ की थी। परन्तु यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन भारतीय सैनिकों ने इससे ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक असंतोष का बीज बो दिया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन

1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना की गयी हुई, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन Bhartiya Swatantrata Andolan को एक संगठित दिशा दी। इसके सबसे प्रथम अध्यक्ष थे ए. ओ. ह्यूम और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के माध्यम से ही भारतीय नेताओं ने अपने विचारों और मांगों को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाना शुरू कर दिया। प्रारंभ के समय में कांग्रेस ने सिर्फ संवैधानिक सुधारों की मांग की, लेकिन धीरे-धीरे यह मांग पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने लग गयी।

बंग-भंग और स्वदेशी आंदोलन

1905 में लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन कर दिया गया, जिससे भारतीय जनता में एक व्यापक असंतोष फैल गया। बंगाल के विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ, जिसमें ब्रिटिश वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार कर दिया गया। बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।

गांधीजी और अहिंसात्मक आंदोलन

1915 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से अपनी पढाई करके भारत लौटे और उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन Bhartiya Swatantrata Andolan को एक नई दिशा दी। गांधीजी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित आंदोलनों की शुरुआत की। 1919 में घटित जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने गांधीजी को असहयोग आंदोलन (1920-22) की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद, उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) का भी नेतृत्व किया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी मार्च

1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून के विरोध में दांडी मार्च की शुरुआत की। दांडी मार्च को 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक चलाया और 6 अप्रैल, 1930 को समाप्त किया। इस आंदोलन ने सम्पूर्ण देश में ब्रिटिश कानूनों का सविनय अवज्ञा करने की लहर पैदा कर दी।

भारत छोड़ो आंदोलन

8 अगस्त, 1942 को बंबई (अब मुंबई) में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित कर दिया गया। गांधीजी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया, जिसने पूरे देश में स्वतंत्रता की मांग को और अधिक तीव्र कर दिया। इस आंदोलन के दौरान लाखों लोग गिरफ्तार हुए और भारी मात्रा में हिंसा और दमन हुआ साथ ही अनेको लोगों की जान भी गयी। Bhartiya Swatantrata Andolan

स्वतंत्रता और विभाजन

द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद से ही ब्रिटिश सरकार पर भारत को स्वतंत्रता देने का दबाव बढ़ गया। 1947 में, भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने में सफल हुआ लेकिन साथ ही देश के टुकड़े भी हुए जिसमे देश का विभाजन हुआ, जिससे भारत और पाकिस्तान नामक दो नए राष्ट्र बने। 15 अगस्त, 1947 को भारत ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। Bhartiya Swatantrata Andolan

निष्कर्ष

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन सिर्फ एक राजनीतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन एक सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी था। इस आंदोलन ने भारतीय समाज को एकजुट किया और उसे आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर किया। स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेताओं और अनगिनत अज्ञात नायकों की कुर्बानियों को हमेशा याद रखा जाएगा, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपनी इतनी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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